एक सुनार था, उसकी दुकान से मिली हुई एक लोहारकी दुकान थी।सुनार जब काम करता तो उसकी दुकान से बहुतधीमी आवाज़ आती, किन्तु जब लोहार कामकरता तो उसकी दुकान से कानों को फाड़ देने वाली आवाज़सुनाई देती।.एक दिन एक सोने का कण छिटक कर लोहार की दुकान में आगिरा। वहाँ उसकी भेंट लोहार के एक कण के साथ हुई।सोने के कण ने लोहे के कण से पूछा- भाई हम दोनों का दुखएक समान है, हम दोनों को ही एक समान आग मेंतपाया जाता है और समान रूप ये हथौड़े की चोटसहनी पड़ती है। मैं ये सब यातना चुपचाप सहता हूँ, पर तुमबहुत चिल्लाते हो, क्यों?..लोहे के कण ने मन भारी करते हुऐ कहा-तुम्हारा कहना सही है, किन्तु तुम पर चोट करनेवाला हथौड़ा तुम्हारा सगा भाई नहीं है। मुझ पर चोटकरने वाला लोहे का हथौड़ा मेरा सगा भाई है।.मोरल : परायों की अपेक्षा अपनों द्वारा दी गई चोटअधिक पीड़ा पहुचाँती है।